बाप के भी शौक होते हैं | A father's untold story of love and sacrifice
(कहानी का परिचय)
ये “बाप के भी शौक होते हैं…father's untold story part 1...” का दूसरा भाग है। अगर आपने पहला भाग नही पढ़ा तो आप इस जगह click करके पहला भाग पढ़ सकते हैं। क्यूंकि किसी भी बात को बीच से सुनना, ना सुनने के बराबर ही होता है। फिर आपको फिर से बात को पूरा सुनना पड़ता है। तो अगर पहला भाग ना पढ़ा हो तो पहले उसे पढ़िए।
बात करते हैं अब दूसरे भाग की। इस भाग में आपको ये पता चलेगा कि कौन सी बात थी जो गिरधर कबीर को बताने में हिचक रहा था। क्यूं नहीं बता पा रहा था कि ये है। और साथ ही साथ कबीर कि रोज लिफ्ट लेने या टेंपू से घर आने वाली समस्या भी दूर हो जाती है। जाने के लिए आइए कहानी की तरफ चलते हैं।
Part 2: बाप के भी शौक होते हैं | A father's untold story of love and sacrifice
कबीर काम पर चला जाता है और इसके पापा खाट को ठीक करके खाट पर बैठ जाते हैं। मम्मी रसोई में चली जाती है। फिर पापा खाट पर लेटे लेटे अपने पिछले दिनों के बारे में सोचते हैं। जब एक दिन वो अपने पिता से बात कर रहे थे।
(Flashback)
गिरधर - पापा मुझे सिंगिंग में करियर बनाना है। मेरा मन किसी और चीज में नहीं लगता है। आप समझ क्यूं नहीं रहे हो।
उनके पापा - एक अच्छी सी नौकरी लग जाओ फिर कर लेना जो भी तुम्हे करना है।
गिरधर - पापा आपको पता है मैं पढ़ाई नहीं कर पाता। मेरा दिमाग नही चलता है उसमे। लेकिन म्यूजिक में मैं बहुत अच्छा हूं। सब लोग कहते है कि मुझे म्यूजिक की समझ है। अगर और मेहनत करूंगा तो एक ना एक दिन सफल हो ही जाऊंगा।
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उनके पापा - बेटा बात को समझो, इन चीजों में कुछ नही रखा। एक दिन धक्के खाते फिरो गे। फिर पढ़ाई के भी दिन निकल जाएंगे। तब याद करोगे मुझे पापा सही कहते थे।
गिरधर - पर पापा अगर मैं कोशिश भी नही करूंगा तो बिना मेहनत किए हार जाऊंगा। इससे अच्छा तो यही होगा ना कि मैं मेहनत करके हारूं। मैं हारना के डर से कोशिश ही ना करूं, ये तो गलत है ना पापा।
उनके पापा - बेटे ये बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं, और तुम्हारी फिल्मों का हीरो भी इन बातों को तब बोलता है जब उसे पैसे मिलते हैं। अगर किसी चीज का अंजाम पहले ही पता हो तो उसे करने का क्या फायदा।
गिरधर - पापा अंजाम वक्त के साथ बदल भी जाते हैं। और मैं अगर पढ़ाई में पीछे हूं, दुनियादारी में बेवकूफ हूं तो क्या मैं हर चीज में बेवकूफ हूं, मैं कुछ और try भी नही कर सकता क्या। और वैसे भी मैं क्यूं मानू की आपको सब पता कि ये करोगे तो नही कर पाओगे, वो करोगे तो नही कर पाओगे, जो मैं कहूंगा वही कर सकते हो। मैं क्यूं मानू…
उनके पापा उनको एक जोरदार थप्पड़ जड़ देते हैं।
उनके पापा - बत्तमीज़, जबान लड़ाता है।
(Out of Flashback)
नीलम - (रसोई से निकलते हुए) खाना रखा है रसोई में, जब भूख लगे, खा लेना।
और कहकर अंदर कमरे में चली जाती है। गिरधर वहीं खाट पर लेटा हुआ ये सोचता है कि क्या कबीर को बताना सही रहेगा। कहीं वो भी मेरी बात को ना समझे और मेरे पापा की तरह मुझे बेवकूफ समझे। बाप की नजरों में बेटा बेवकूफ लगे तो अलग बात है और बेटे की नजरों में बाप बेवकूफ लगे तो बहुत शर्म वाली बात है। ये सोचते हुए गिरधर करवट लेकर आंखे बंद कर लेता है।
इधर हम कबीर को देखते हैं जो अपनी समान डिलीवरी करने वाली कंपनी में अपने सुपरवाइजर से बात कर रहा होता है।
कबीर - सर, क्या मैं इस चार्जिंग स्कूटी को घर ले जा सकता हूं।
सुपरवाइजर - क्यूं, हम समान कैसे डिलीवर करेंगे।
कबीर - नहीं सर, मतलब…शाम को घर में घर जाता हूं, उस वक्त और सुबह आते टाइम ले आया करूंगा। रात को तो कंपनी बंद ही तो होती है सर।
सुपरवाइजर - (रजिस्टर में लिखते हुए) नहीं।
कबीर - सर प्लीज, आने जाने काफी किराया लग जाता है सर और सैलरी भी नही बड़ रही है।
सुपरवाइजर - (कुर्सी से उठते हुए) नहीं, कुछ दिनों में कंपनी 24×7 hour open रहेगी। तब जरूरत पड़ेगी।
कबीर - सर तब तक दे दीजिए…….
इतना कहते ही सुपरवाइजर ऑफिस में चला जाता है। उसकी ये बातें एक और लड़का सुन रहा था। उसका नाम सन्नी था।
सन्नी - और भाई, क्या हुआ।
कबीर - कुछ नहीं भाई।
सन्नी - क्या पता तेरी मेरी प्रोब्लम एक ही हो।
कबीर - क्या मतलब
सन्नी - मतलब तुझे आने जाने में पैसों की दिक्कत है ना। मुझे भी वही है। मैं वैसे तो बाइक से आता हूं। लेकिन petrol के पैसे काफी लग जाते हैं। बहुत महंगा पड़ रहा है भाई।
कबीर - तो प्रोब्लम तो एक हो गई पर सॉल्यूशन तो नही निकला ना।
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सन्नी - देख भाई, तेरे आने जाने के 40 लग जाते हैं। और मेरे भी बाइक से लगभग इतने ही लग जाते हैं। तो तू ऑटो वाले को 20 रुपे देने की बजाय मुझे 10 रुपे दे तुझे घर से लाने का, और 10 दे घर ले जाने का। अब तेरे आने जाने के हो गए 20 रुपे। तो तेरे बचे 20 रुपे और मुझे भी मिले 20 रुपे। और महिने पर दोनों को हुआ 600 - 600 का फायदा। उन पैसों का अब तू momo खा या पिज्जा खा या कोठे पर जा, तेरी मर्जी।
कबीर - भाई ये तो…बढ़िया जुगाड है।
सन्नी - तो deal done?
कबीर - हां भाई बिलकुल done।
घर पर नीलम तैयार होकर गिरधर को जगाती है।
नीलम - सुनो, खड़े हो जाओ।
गिरधर - हां
नीलम - बाजार चलो, सब्जी लेके आनी है।
गिरधर खाट से उठ जाता है और साइकिल निकलता है बाजार जाने के लिए। दोनों साइकिल पर बैठकर बाजार की तरफ निकल जाते हैं। रास्ते में नीलम गिरधर से पूछती है।
नीलम - सुबह से ही सो रहे थे क्या?
गिरधर - हां।
नीलम - और खाना नी खाया।
गिरधर - ना अभी ना खाया। भूख सी ना लगी।
नीलम - कहीं कल की बात तो ना सोच के बैठे।
गिरधर - बात तो कल की सोच रहा था पर खाने का उससे कोई लेना देना नहीं है। भूख सी ना लगे आज कल।
नीलम - तुम कबीर से बात क्यूं ना कर लेते। क्या बात है ऐसी जो ना मैं समझूंगी ना कबीर समझेगा ना कोई और। तो कौन समझेगा। क्या किसी पर भरोसा नहीं है तुम्हें।
गिरधर - बात भरोसे की है ही ना नीलम, बात है बात की। किसी दिन वक्त आएगा तो बता दूंगा।
नीलम - और वो वक्त कब आएगा ? और तुम्हारे हिसाब से वो वक्त आया ही नहीं तो। क्या यूंही सुनते रहोगे बेटे की।
गिरधर कुछ नही कहता है। बस साइकिल चलाने पर ध्यान देता है। फिर नीलम भी उससे दोबारा नहीं पूछती और वो भी गुस्सा हो कर बैठ जाती है। बाजार पहुंचते ही नीलम साइकिल से उतर कर समान लेने लगती है और गिरधर एक तरफ साइकिल खड़ी करके बीड़ी पीने लगता है। और सोचता है
( यहां Father's Untold Story का दूसरा भाग खत्म होता है। तीसरे भाग को पढ़ने के लिए हमारी next post पर जाइए।)
______________(दूसरा भाग समाप्त)______________
Part 1 - (बाप के भी शौक होते हैं | A father's untold story of love and sacrifice)
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