बाप के भी शौक होते हैं | A father's untold story of love and sacrifice
Introduction to the story: Father's Untold Story
(कहानी का परिचय)
ये कहानी "Father's untold story" एक ऐसे बाप की है जिसे अपनी जवानी के दिनों में अपने सपनों को छोड़कर अपने कर्तव्यों पर ध्यान देना पड़ा। और अपनी सपनों को बाद के लिए छोड़ना पड़ा। फिर बाद में उसने क्या क्या किया। उसे किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा। पिता, पत्नी और बच्चों के बीच रहकर भी उसने कैसे अपने सपने पर काम किया।
Part 1: बाप के भी शौक होते हैं | A father's untold story of love and sacrifice
कबीर अपनी जॉब की शिफ्ट खत्म करके रोड पर खड़ा है और घर जाने के लिए लिफ्ट मांग रहा है। उसे काफी देर हो जाती है लेकिन कोई गाड़ी रोकता नहीं है। वो एक बार सोचता भी है कि ऑटो ले ले। पर फिर सोचता है कि कुछ देर और देख ले। तभी एक पहलवान आदमी अपनी बाइक रोकता है।
पहलवान - कित जागा।
कबीर - भईया बस आगे वाली लाइट से लेफ्ट जाऊंगा। अगर आप उसी तरफ जाओ तो ले चलना, नही तो वहां से मै पैदल चला जाऊंगा।
पहलवान - बैठ भाई। ऑटो ना मिलते के अड़े ते।
कबीर - मिलते हैं भईया। पर पैसों की थोड़ी तंगी सी है तो लिफ्ट ले लेता हूं।
पहलवान - कितने रुपे लाग जा करें।
कबीर - 20 रुपे लग जाते हैं भईया।
पहलवान - (बाइक को रोकते हुए) इरे तेरी, भांचो 20 रुपे वी कोनी। उतर भाई 1 लाख की पे बी नी बैठेगा फेर तू।
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ऐसा कहते ही वो कबीर को बीच रास्ते में उतार के चला जाता है। उस वक्त कबीर को बहुत बुरा लगता है। इसलिए नहीं के उसने कबीर को बेच रास्ते में उतार दिया। बल्कि इसलिए की 20 रुपे बचाने के लिए उसे इस तरह की बातें सुननी पड़ रही हैं। वो पूरे रास्ते पैदल चलता है। किसी से लिफ्ट नही लेता। और रास्ते भर इसी बात को मन में दोहराता रहता है।
घर पहुंचते ही उसे उसके पापा (जिनका नाम गिरधर है) दिखाई देते हैं जो की खाट पर लेटे थे। अंदर जाते ही वो अपने पापा से कहता है।
कबीर - एक बात बताओ पापा, दुनिया के बाप छोड़ते हैं अपने बेटों के लिए धन - दौलत, जमीन - जयदात । पर आपने, आपने हमारे लिए क्या छोड़ा। और छोड़ा क्या आप तो हमसे लेते ही जा रहे हैं। मैं ये नी कह रहा कि मैं आपको खिला पिला रहा हूं तो कोई एहसान कर रहा हूं। मैं तो बस ये कह रहा हूं कि आपने इतनी अच्छी नौकरी क्यूं छोड़ दी और वो भी सरकारी।
नीलम - (कबीर की मां) नौकरी छोड़ने की बात तो छोड़ो बेटा, इन्होंने तो जितना पैसा बड़े शौक से कमाया था वो उड़ा भी उतने ही शौक से दिया।
गिरधर - तो, क्या गलत किया मैने। अपने लिए कमाया था, अपनी मेहनत लगाई थी, अपना पसीना लगाया था। उस उम्र के जो शौक होते हैं उनका गला घोंटा था, मेहनत की थी।
लेकिन अब उसी मेहनत का मैं फल खा रहा हूं तो तुम्हे क्यूं बुरा लग रहा है। मैने कमाया था तो मैने ही उड़ा दिया। तुम्हे उड़ाना है तो तुम कमाओ।
और बात रही मुझे खिलाने पिलाने की तो बेटा ये घर मेरे पैसों से बना है। अगर मुझे खाना नही दोगे तो मैं भी तुम्हे रहने की जगह नहीं दूंगा।
कबीर - मुझे उड़ाना नही है पापा, मुझे तो जो ज़रूरतें आ रही हैं ना, उनमें लगाना है।
गिरधर - कौन सी ज़रूरतें, ये TV का बिल। क्या जरूरत है इसकी, इसमें कलेश देख देखकर ये तेरी बहु के लिए मुसीबतें खड़ी करेगी। और और ये बिजली का बिल जो TV से ही बढ़ रहा है। ये छत्तीस तरह की लाइट लगी हुई हैं क्या काम है इनका, ये 20 तरह के Decorative items। और ये दीवारों पर अलग अलग रगों के डिजाइन। ये ज़रूरतें नही हैं बेटा। ये फिजूल खर्च हैं। रोको इन्हें।
नीलम - अच्छा, ये बिजली का बिल उस पंखे से भी बढ़ता है जिसमे तुम सोते हो। और उस लाइट से भी जिसे तुम पूरी रात भर जला कर रखते हो। और जिस TV की तुम बात कर रहे हो ना, उसको सबसे ज्यादा तुम ही देखते हो। मेरे कलेश तो रात को ही आते हैं बस। पूरा दिन कौन देखता है?
कबीर - अरे मां, आप ये बात छोड़िए। पापा आप कम से कम ये तो बताइए कि आपने अपनी जॉब छोड़ी क्यूं। क्या आपको पैसा अच्छा नहीं लग रहा था। या आपको कोई परेशान करता था वहां पर। कोई तो वजह होगी।
गिरधर - बात ऐसी है बेटा, के तू नई समझेगा। तू वही कहेगा मुझे जो तेरी मां कहती है, कामचोर।
ऐसा कहते ही बाप घर से बाहर चला जाता हैं। मां भी माथे पर हाथ रखकर चली जाती है घर के अंदर। कबीर वहां खड़ा सोचता है कि पापा ने ऐसा क्यूं कहा कि मैं नहीं समझूंगा। क्या बात कुछ और है? लेकिन मुझे तो मम्मी ने आज तक यही बताया है कि एक दिन अचानक पापा रिजाइन दे आए थे और अगले ही दिन घूमने निकल गए मनाली। और तब से ऐसा ही चल रहा है।
शाम को गिरधर घर आते हैं। घर के आंगन में दो खाट बिछ रही थीं। एक पर कबीर बैठा था और दूसरी खाली थी। उस समय कबीर खाना खा रहा था और उसकी मम्मी रसोई में रोटियां बना रही थी।
गिरधर - लाओ, रोटी ले आओ(कहकर खाट पर बैठने लगता है)।
नीलम - वहां मत बैठो, मैं थाली में कर रही हूं, यहीं से ले जाओ।
(गिरधर उठकर रसोई से थाली में खाना ले आता है।)
कबीर - पापा बताओ तो सही, क्या बात थी। और आपको ऐसा क्यूं लगता है कि मैं समझूंगा नहीं।
गिरधर कुछ नही कहते हैं और थाली उठाकर रसोई में जाते हैं। थाली में 2 रोटी और लेकर छत पर चले जाते हैं। कबीर बस उन्हें देखता ही रहता है। फिर मां एक और रोटी लाती है और कबीर की थाली में रखते हुए कहती है।
नीलम - रहने दे बेटा वो नहीं बताएंगे। मैं भी तो कितने सालों से पूछ रही हूं।
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लेकिन कबीर के मन में वो बात जैसे बैठ गई हो। कबीर चुप चाप खाना खाने लगता है।
अगली सुबह कबीर तैयार होकर काम पर जाने लगता है। उसकी मां रसोई से टिफिन लाती है। वो टिफिन पकड़कर अपने पापा की तरफ देखता है। जो की वहीं आंगन में खाट की पाएतियों को खींच कर टाइट कर रहे थे। कबीर ऐसे देख रहा था जैसे रात की बात फिर से पूछना चाहता हो लेकिन रात की तरह जवाब ना मिलने की वजह से नहीं पूछ रहा हो। और उसके पापा भी उससे और दिन की अपेक्षा नजर नहीं मिला रहे थे। जैसे उन्हें भी लग रहा हो कि ये फिर से वही बात ना पूछ ले। कबीर अपने पापा को देख रहा था। उसके पापा उससे नजर नहीं मिला रहे थे और उसकी मम्मी उन दोनों को ही देख रही थी।
नीलम - जाओ बेटा, देर हो जायेगी।
कबीर - हां मां।
( यहां "father's untold story कहानी का पहला भाग खत्म होता है। )
______________(पहला भाग समाप्त)______________
Part 2 - (बाप के भी शौक होते हैं | A father's untold story of love and sacrifice)
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